(शब्द नं. - 3)
झूठी दुनिया में रूह जलती है जी
टेक :- झूठी दुनिया में रूह जलती है जी, प्रभु चरणों में लगाले।
प्रार्थना कर रहे हैं, हमें अपना बना ले।।
1. बहार क्या चीज होती है, हम को ये पता ही ना था।
तड़पाया गर्जी दुनिया ने, हुए दिल पे छाले, हमें अपना....
2. गर्ज होती तो हर कोई, हम से जी प्रेम जताता था।
हुई जब गर्ज ना पूरी, तो नाते सब तोड़ डाले, हमें अपना....
3. विषय विकारों में फंस के, गुनाह के अंगार जलाएं।
जल उठा आशियां* हमरा जी, ठंडक दाता जी पा दे,
हमें अपना.... * घोंसला
4. काबिल इस कदर नहीं हैं, आप को जी हम पा जाएं।
नजरे कर्म करके जी, हमें काबिल बना ले, हमें अपना....
5. जुदा हुए हैं सदियों से, दु:खों में समय गुजारा है।
सताया बड़ा ही काल ने, इससे दाता जी बचा ले, हमें....
6. माया के जाल में फंसकर, हमने जी रब्ब को भुलाया।
जालिम माया सर्पनी से, दाता जी (हमको) बचा ले,
हमें अपना....
7. बहार आई जी मुर्शिद जी, आपने जब अपना बनाया।
बंजर दामन में, मेहर से, गुल खिला डाले, हमें अपना....
8. दास तेरे “मीत" से मुर्शिद जी, मेहर ना ब्यान हो पाए।
कलम जीभा में ताकत ना, ब्यां जो कर डाले, हमें अपना...।।