(शब्द नं. - 5)सोहणे “परम पिता शाह सतनाम जी"
टेक:- सोहणे “परम पिता शाह सतनाम जी"...
करूं विनती सुबह और शाम जी।
हर स्वास में मेरे सतगुर (दाता),
रहूं जपता तेरा ही नाम जी ।।
1. जब दर्शन तेरा पाया, रूह रूपी कमल मुस्काया।
तक (देख) नूरी सोहणा मुखड़ा, मस्ती का पी लएं जाम जी।
हर स्वास....
2. सारी संगत को पास बिठाते, खुद हँसते सबको हँसाते।
प्यारी मीठी बातें आपकी, सचखण्ड का दें पैगाम जी।
हर स्वास....
3. दुनिया का बंधन तोड़ा, अपने चरणों से जोड़ा।
प्रीत ओड़ निभाना सबकी, सारी संगत का ये अरमान जी।
हर स्वास....
4. जीभा तेरे ही गुण गाए और लफ्ज जुबां पे ना आए।
तेरी याद कभी ना भूले, हम सबको दो वरदान जी।
हर स्वास....
5. तेरे प्रेम में पागल हो जाऊं, दुनिया की होश भुलाऊं।
ऐ दोनों जहां के मालिक, मेरी विनती करो परवान जी।
हर स्वास....
6. सब काम रहे आप कर जी, दु:ख सबके रहे हो हर जी।
सुख पाए खुशियां माने, वचनों को सुने दे ध्यान जी।
हर स्वास....
7. समुंद्र स्याही कलम बनराए जी,
धरती का कागज बनाए जी।
होए पवन लिखारी चाहे,
लिखा जाए ना तेरा गुणगान जी। हर स्वास....
8. बिन मांगे सब कुछ देते, बदले में कुछ ना लेते।
जीव आपको दे क्या सकता,
आप मालिक दोनों जहान जी। हर स्वास....
9. हम पर किए जो अहसान जी,
जीभा कर नहीं सकती ब्यान जी।
मेरे “शाह सतनाम जी" प्यारे,
क्या तुझपे करूं कुर्बान जी। हर स्वास में मेरे....।।