(शब्द नं. 19)
शाह सतनाम जी दाता दोनों जहां
टेक:- “शाह सतनाम जी दाता, दोनों जहां
रूह को लेने धरत पे आए हैं।
माह जनवरी में अवतार हुए,
काल देश से जीव को छुड़ाए हैं।
1. जलालआने में रोशन जलाल हुए,
रूहों लिए जी पैदा दयाल हुए।
धन धरती वो जहां पे जन्म लिया,
धन जिन्होंने पहले जी चरण छुए।
धन फिजां, आसमां जिसने दर्श किए,
सब सृष्टि ने फूल बरसाए हैं, “शाह सतनाम जी....
2. पिता वरयाम सिंह जी के घर हैं आए,
कुल मालिक आप पधारे जी।
माता आस कौर जी के जन्म लिया,
बने उनकी आंख के तारे जी।
लाड़ प्यार से हर कोई देखने लगे,
हुलारे मस्ती के उसको आए हैं, “शाह सतनाम जी...
3. रूहें जलती थी काल के अन्धकार में,
तड़प-तड़प के रब्ब (मालिक) को बुला थी रही।
जल्दी आओ जी सिरजनहार दाता,
रो-रो तरले रूहें ये पा थी रही।
धुन्ध काल की जब ये छाने लगी,
बन सूरज रूहानियत के आए हैं, “शाह सतनाम जी...
4. मन माया ने रूह को अधीन किया,
बुरी तरह जाल में फंसा था लिया।
जिधर चाहें ये रूह को ले जाएं,
अपना निज देश रूह को भुला था दिया।
ये देश नहीं है, तेरा अपना,
रूह को मार्ग दिखाने आए हैं, “शाह सतनाम जी...
5. काम, क्रोध, मोह, लोभ तड़पा रहे,
हउमै अग्नि में रूह को जला थे रहे।
पांच चोरों में जो भी स्वास लगे,
कौडी बदले ये हीरे थे जा जी रहे।
इक स्वास का मोल त्रिलोकी जी,
हमें स्वासों का मोल बताए हैं, “शाह सतनाम जी...
6. अन्धविश्वास ने भी थे घेर रखे,
चारों तरफ ही ठगों का पसारा था।
रास्ता नजर ना सच का कहीं पे आए,
फंसा झूठ ने सबने ही मारा था।
इस झूठ को दुनिया से, हटाने लिए,
सच रूपी मशाल जगाए हैं, “शाह सतनाम जी...
7. पाप जन्म -जन्म के थे लाखों चढ़े,
रूह कर्मों के चक्कर में फंस रही थी।
बड़े यत्न करे व इल्म पढ़े,
दिनों दिन जकड़ इनकी कस रही थी।
सतगुर जी, दुनिया में आ करके,
भारी पापों का ढेर जलाए हैं, “शाह सतनाम जी...
8. चोला मानुष का पा के हैं मालिक आए,
जीवों को बड़ा ही समझाया है।
किस देश से आए व कौन हो तुम,
सब सत्संग में ये बतलाया है।
हमरे ही तरह यहां पर रह कर,
निज-घर की बात बताए हैं, “शाह सतनाम जी...
9. धन धन हो पिता “शाह सतनाम जी,
लाखों पापी जिन्होंने हैं तारे जी।
खुशियां दोनों जहां की हैं मिलती उसे,
सच्चे दिल से जो तुझको पुकारे जी।
दासन दास पे मेहर(रहमत)कर दाता,
चरणों का “मीत बनाए हैं,
“शाह सतनाम जी दाता... ।।