(शब्द नं. 14)
जी सतगुर जग विच आए ने
टेक:- जी सतगुर जग विच आए ने, रूहां ने तड़प बुलाए ने।
जी चोला बन्दे दा पा के रूहां नूं लेने आए ने।
जनवरी सुखभरी, लै के आई दातार जी।।
1. चन्द सूरज पए सजदा करदे, झूमे धरती सारी।
त्रिलोकी विच छाइयां खुशियां, चढ़ गई अजब खुमारी,
जी सतगुर ...
2. धन धन है जी मात-पिता नूं जिन्हां दे खुदा घर आए।
नूर रब्ब दा ऐसा छाया, चन्द सूरज शर्माए,
जी सतगुर ...
3. धन धन जी "शाह मस्ताना जी", जिन्होंने भेद बताया।
धुरों मौज सतनामी आई, प्यार नाल समझाया,
जी सतगुर ...
4. पाप जुल्म दी धुन्ध सी छायी, रूहां सी कुरलाउंदियां।
तड़प तड़प के रूहां फिर जी, मालिक मालिक सी गाउंदियां,
जी सतगुर...
5. ज्यों मेले विच जाके बच्चे ने, बाप दी उंगल छुड़ाई।
मेला सारा तद फिक्का लगेया, बाप ना दित्ता दिखाई,
जी सतगुर...
6. इसे तरहां ही रूहां ने जी, काल देश चित लाया।
देख के काल दे खेल-खिलौने, मालिक दिलों भुलाया,
जी सतगुर ...
7. मन माया दे अजब रंगां ने, रूह नूं बड़ा फसाया।
पंज चोरां दा जाल सुनहरी, पकडऩ लई लगाया,
जी सतगुर ...
8. दाता जी ने सत्संग लाके, जीवां नूं समझाया।
काल तों बचण दा सच्चा मार्ग, नाम शब्द पकड़ाया,
जी सतगुर...
9. "शाह सतनाम जी" सहारे रुके ने, खण्ड ब्रह्मण्ड सारे।
धन-धन जी सानूं दर्श दिखाया, असीं जाइए बलिहारे,
जी सतगुर...
10. दासन दास की गुण तेर गाए, "मीत" बनाने वाले।
तेरी रहमत नाल ही दाता, खुशियां छाइयां सारे,
जी सतगुर ...।।