(शब्द नं. 29)
ना कोई था गुण जी
टेक:- ना कोई था गुण जी, ना कोई था पुन जी,
तेरी रहमत से दाता, सुनी रब्बी धुन जी।
1. दुनिया में भटक रहे थे, यूं ही मेरे दाता।
दुनिया में फंस के रूह को, चैन नहीं था आता।
ना रब्ब की सुनाता कोई, ना रहा था सुन जी। तेरी रहमत ...
2. औगुणों से भरे थे, गुनाहीं थे हम दाता।
दुनिया में स्वार्थ बिन, कोई था ना जी नाता।
थे लाचार बड़े ही, थी उधेड़-बुन* जी। तेरी रहमत ...
3. दामन में कांटे थे, कली नजर ना आती थी कोई।
छलनी जिगर जब हुआ, रूह तड़प-तड़प के रोई।
नजरें थी सब ने फेरी, ना रहा (था) कोई सुन जी। तेरी रहमत...
4. ठोकरें खा के गिरे जब, तेरे दर पे मेरे दाता।
आपने प्यार जो दिया, वर्णन ना वो हो पाता।
सीने से हमें जी लगाया, ना देखे अवगुण जी। तेरी रहमत...
5. निवाजा जो प्रेम से जी, गुनाहों का काट के साया।
लाख जानें कुर्बां करदें, बदला ना जाए चुकाया।
महिमा ना हो पाए, देखे शब्द चुन जी। तेरी रहमत...
6. दासन दास “मीत ये, धन धन गुरू ही गाए।
“शाह सतनाम जी की महिमा, जीभा ना जी गा पाए।
हर पल सच्चे दाता, गाएं तेरे गुण जी, तेरी रहमत...॥